गुरुवार, 30 जून 2022

कविता - वो तेरे खत...




वो तेरे खत...

जो बरसों मैंने सहेजकर रखे थे

आज उन ख़तों को खोलकर बैठी हूँ

तुझसे तो कुछ सुन ना सकी

इन ख़तों में तुझे सुनने बैठी हूँ।


एक खत है भीगा-भीगा मौसम-सा

जिसमें समाई है तेरे प्यार की खुशबू

एक कोने में मेरी हथेलियों की

हिना भी महकी है

मैं इन महकते अहसासों में डूबने बैठी हूँ

तुझसे तो कुछ सुन ना सकी

इन खतों में तुझे सुनने बैठी हूँ।


एक ख़त है पलाश के जंगल-सा

जिसमें अधजले-से तुम सुलग रहे हो

अंगारों-सी मैं भी दहक रही हूँ

मैं इस अलाव में चिंगारी खोजने बैठी हूँ

तुझसे तो कुछ सुन ना सकी

इन खतों में तुझे सुनने बैठी हूँ।


एक ख़त है शबनम-सा जमा हुआ

जैसे जम गई है बर्फ रिश्तों की दहलीज़ पर

बहुत जमी पर थोड़ी पिघली इस बर्फ को

मैं हथेलियों की गरमाहट से पिघलाने बैठी हूँ

तुझसे तो कुछ सुन ना सकी

इन ख़तों में तुझे सुनने बैठी हूँ।


ख़तों में सिमटे प्यार के जहाँ को

हक़ीक़त में संवारने बैठी हूँ

ऐ ज़िन्दगी सचमुच

मैं तेरे हर हर्फ़ को सुनने

बेचैन, बेताब बैठी हूँ।

तुझसे तो कुछ सुन ना सकी

इन ख़तों में तुझे सुनने बैठी हूँ।


इस कविता का आनंद लीजिए, ऑडियो की मदद से...


कविता - कभी ऑफलाइन होकर ज़िंदगी को देखो...



कभी ऑफलाइन होकर जिंदगी को देखो
कितनी हसीन है, महसूस करके देखो
कभी बादलों के साथ उड़ा जा रहा है मन
कभी हरी भरी वादियों में अटक गया है मन
तमाम भटकनों से दूर
इन मखमली फिज़ाओं में भटककर देखो
कभी ऑफलाइन होकर जिंदगी को देखो।


कभी चुप है जमीं-आसमाँ और
गूँजता है भीगा भीगा-सा मन
कभी पिघल रहा है मन
कभी घटाओं में घुल रहा है मन
पिघलते मोम-सा बूँद-बूँद पिघलकर देखो।
कभी ऑफलाइन होकर जिंदगी को देखो।

तन तो है बर्फ सा जमा हुआ
पर मन की उड़ान रोक ना सका
नीला-नीला ये गगन
कभी पंछी बन पंख पसार
बादलों के पार की दुनिया खोजकर देखो।
कभी ऑफलाइन होकर जिंदगी को देखो।

आँसुओं की झील भी छलक उठी है आज
जीने का मिल गया है एक नया अंदाज
हर शाख पर सरसराते पत्तों ने छेड़ा है नया राग
कभी राग-रागिनियों की गूँज में खोकर देखो
कभी ऑफलाइन होकर जिंदगी को देखो।

स्वप्न सारे जो बसे थे पलकों पर
उन्हें हकीकत की ज़मीन पर उतारकर
कभी इस हरीतिमा की गोद में
हरसिंगार-सा संवरकर खुद का अक्स देखो।
कभी ऑफलाइन होकर जिंदगी को देखो

इस चुप्पी में मिल गया
जीवन का नव गीत है
ये गीत ही मन का मीत है
इस मीत से प्रीत निभाकर देखो
कभी गीत और गूँज का मेल मन भरकर देखो
कभी ऑफलाइन होकर जिंदगी को देखो।


इस कविता का आनंद लीजिए, ऑडियो की मदद से....