शुक्रवार, 2 जुलाई 2021

कविता - शब्दों के व्यापारी


चित्र : गुगल से साभार

हम शब्दों के व्यापारी हैं
शब्द बेचते हैं
बोलो खरीदोगे ?


हमारे शब्दकोश में
सच्चाई बिकती है
निर्वसन होकर
क्या तुम इसे खरीदकर
अपने विचारों के
कोष में रखकर
ईमानदारी का वसन पहनाओगे ?


जवाब दो!
हम तुम्हारा जवाब सुनने व्याकुल हैं
यह जवाब तुम्हारा चरित्र है
और हमारा अधिकार!
अगर तुम्हारा जवाब हाँ है
तो हमें खुशी है
कि तुम अभी भी जी रहे हो
शब्दों को विचारों में
घोलकर पी रहे हो।


यदि तुम्हारा जवाब ना है
तो बिना कोई सवाल किए
आगे बढ़ जाओ
यहाँ तुम्हारे सवाल की भी
कोई अहमियत नहीं है
चलते जाओ असत्य की राहों पर
जितना खरीद सकते हो
खरीद लो-सफेद पोशाक में लिपटा
सफेद झूठ।


तुम्हारा यह झूठ
जीवन को नया रूप देगा
विचारों को नवस्वरूप देगा
आधुनिकता का दलदल
बढ़ता जाएगा
कुविचारों सहित
तुम इसमें फँसते जाओगे
तब एक मोड़ पर
फिर मुलाकात होगी
हम शब्दों के व्यापारी से
कुछ निराशा लिए
तुम पूछोगे-
क्या हमें शब्द बेचोगे ?


तब हमारी बूढ़ी आँखें
चमक उठेंगी
और काँपते होंठ कह उठेंगे-
यही तो हमारा कर्म है।
खुश हो जाओगे तुम
हमारे इस कर्म पर
लेकिन तब तक
तुम्हारे हाथों में जाते ही
सच्चाई
झूठ के हाथों बिक जाएगी।


आज बने हैं हम
शब्दों के व्यापारी
कल बनोगे तुम व्यापारी
हमारी तरह तुम भी कहोगे
सच्चाई बिकती है
बोलो खरीदोगे ?


कब तक चलेगा यह क्रम ?
कुछ तो बदलाव लाओ
सच्चाई को झूठ का नहीं
सच का आईना दिखलाओ।


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गुरुवार, 1 जुलाई 2021

कविता - चाहत


चित्र : गुगल से साभार

मैं चाहती हूँ

धूप को अपनी

बाँहों में ले लूँ

और हवाओं की

थपकियाँ देकर

सुला दूँ उसे

बादलों के

बिछौने पर

कुछ देर तो ठहर सकूँ

चाँद के गाँव में

घनी जुल्फें बिखराऊँ

चाँदनी की छाँव में

वहाँ सितारों का

मेला लगा है

और हर सितारे में

जुल्फों के जंगल से गुजरकर

इंद्रधनुष तक पहुँचने की

होड़ मची है

बीच में मुस्कान की पगडंडियाँ भी

पार करनी है उन्हें

और केवल मैं ही

साक्षी बनना चाहती हूँ

इन सुखद क्षणों की

इसलिए धूप को

बादल के बिछौने पर सुलाकर

कोहरे की चादर ओढ़ाकर

लगा लिए हैं उम्मीदों के पंख

उड़ चली हूँ नीलगगन में।

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कविता - ऐ खुशी...


चित्र : गुगल से साभार

ऐ खुशी…

फिर से आना मेरी ज़िंदगी में,

खनकती चूड़ियों की तरह,

झनकती पायल की तरह,

झिलमिल बिंदिया की तरह,

और सजा देना मुझे नई दुल्हन की तरह।

ऐ खुशी…

फिर से आना मेरी ज़िंदगी में

बरसना मेघ मल्हार की तरह,

सजना गर्म रातों में सितारों की तरह,

बहना सर्द हवाओं की तरह,

और सजा देना मुझे नए मौसम की तरह।

ऐ खुशी…

फिर से आना मेरी ज़िंदगी में

नई सौगात, नए स्वपन की तरह,

नई उमंग, नए उत्साह की तरह,

नई ग़ज़ल, नए गीत की तरह,

और सजा देने मेरे पल-पल को

नए वर्ष की नई बेला की तरह।

ऐ खुशी…

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