बुधवार, 31 अगस्त 2022

खंडकाव्य - रस द्रोणिका - भाग - 5

 कवि - आचार्य श्री रामशरण शर्मा



चित्र : गूगल से साभार


‘रस द्रोणिका’ खंडकाव्य एक ऐसी कृति है, जिसमें एक ऐसा पात्र के संघर्षमयी जीवन का शाश्वत एवं जीवंत वर्णन किया गया है, जो आगे चलकर समाज, देश, काल एवं इतिहास में अपना प्रभुत्व स्थापित करता है। जो भावी पीढ़ी के लिए एक सबक है कि जब जब किसी राजा या शक्तिशाली व्यक्ति ने कर्म एवं समाज के पथ-प्रदर्शक गुरु का अपमान किया है, तब-तब आचार्य द्रोण और चाणक्य जैसे महामानव का प्रादुर्भाव हुआ है। जिसने ऐसे उद्दंड, स्वार्थी व्यक्ति से समाज और देश को मुक्ति दिलाई है। आचार्य श्री रामशरण शर्मा द्वारा रचित यह एक अनुपम कृति है।


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खंडकाव्य - रस द्रोणिका - भाग - 4

 

कवि - आचार्य श्री रामशरण शर्मा



चित्र : गूगल से साभार


‘रस द्रोणिका’ खंडकाव्य एक ऐसी कृति है, जिसमें एक ऐसा पात्र के संघर्षमयी जीवन का शाश्वत एवं जीवंत वर्णन किया गया है, जो आगे चलकर समाज, देश, काल एवं इतिहास में अपना प्रभुत्व स्थापित करता है। जो भावी पीढ़ी के लिए एक सबक है कि जब जब किसी राजा या शक्तिशाली व्यक्ति ने कर्म एवं समाज के पथ-प्रदर्शक गुरु का अपमान किया है, तब-तब आचार्य द्रोण और चाणक्य जैसे महामानव का प्रादुर्भाव हुआ है। जिसने ऐसे उद्दंड, स्वार्थी व्यक्ति से समाज और देश को मुक्ति दिलाई है। आचार्य श्री रामशरण शर्मा द्वारा रचित यह एक अनुपम कृति है।


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शुक्रवार, 26 अगस्त 2022

खंडकाव्य - रस द्रोणिका - भाग - 3

कवि - आचार्य श्री रामशरण शर्मा


चित्र : गूगल से साभार

‘रस द्रोणिका’ खंडकाव्य एक ऐसी कृति है, जिसमें एक ऐसा पात्र के संघर्षमयी जीवन का शाश्वत एवं जीवंत वर्णन किया गया है, जो आगे चलकर समाज, देश, काल एवं इतिहास में अपना प्रभुत्व स्थापित करता है। जो भावी पीढ़ी के लिए एक सबक है कि जब जब किसी राजा या शक्तिशाली व्यक्ति ने कर्म एवं समाज के पथ-प्रदर्शक गुरु का अपमान किया है, तब-तब आचार्य द्रोण और चाणक्य जैसे महामानव का प्रादुर्भाव हुआ है। जिसने ऐसे उद्दंड, स्वार्थी व्यक्ति से समाज और देश को मुक्ति दिलाई है। आचार्य श्री रामशरण शर्मा द्वारा रचित यह एक अनुपम कृति है।


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खंडकाव्य - रस द्रोणिका - भाग - 2


कवि - आचार्य श्री रामशरण शर्मा



चित्र : गूगल से साभार

‘रस द्रोणिका’ खंडकाव्य एक ऐसी कृति है, जिसमें एक ऐसा पात्र के संघर्षमयी जीवन का शाश्वत एवं जीवंत वर्णन किया गया है, जो आगे चलकर समाज, देश, काल एवं इतिहास में अपना प्रभुत्व स्थापित करता है। जो भावी पीढ़ी के लिए एक सबक है कि जब जब किसी राजा या शक्तिशाली व्यक्ति ने कर्म एवं समाज के पथ-प्रदर्शक गुरु का अपमान किया है, तब-तब आचार्य द्रोण और चाणक्य जैसे महामानव का प्रादुर्भाव हुआ है। जिसने ऐसे उद्दंड, स्वार्थी व्यक्ति से समाज और देश को मुक्ति दिलाई है। आचार्य श्री रामशरण शर्मा द्वारा रचित यह एक अनुपम कृति है।


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खंडकाव्य - रस द्रोणिका - भाग - 1

कवि - आचार्य श्री रामशरण शर्मा


चित्र : गूगल से साभार


‘रस द्रोणिका’ खंडकाव्य एक ऐसी कृति है, जिसमें एक ऐसा पात्र के संघर्षमयी जीवन का शाश्वत एवं जीवंत वर्णन किया गया है, जो आगे चलकर समाज, देश, काल एवं इतिहास में अपना प्रभुत्व स्थापित करता है। जो भावी पीढ़ी के लिए एक सबक है कि जब जब किसी राजा या शक्तिशाली व्यक्ति ने कर्म एवं समाज के पथ-प्रदर्शक गुरु का अपमान किया है, तब-तब आचार्य द्रोण और चाणक्य जैसे महामानव का प्रादुर्भाव हुआ है। जिसने ऐसे उद्दंड, स्वार्थी व्यक्ति से समाज और देश को मुक्ति दिलाई है। आचार्य श्री रामशरण शर्मा द्वारा रचित यह एक अनुपम कृति है।


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बुधवार, 17 अगस्त 2022

कविता - झाँसी की रानी

कवयित्री - सुभद्राकुमारी चौहान




चित्र : गूगल से साभार




सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,

बूढ़े भारत में भी आयी फिर से नयी जवानी थी,

गुमी हुई आज़ादी की क़ीमत सबने पहचानी थी,

दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी,

चमक उठी सन् सत्तावन में

वह तलवार पुरानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

कानपूर के नाना की मुँहबोली बहन 'छबीली' थी,

लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,

नाना के संग पढ़ती थी वह, नाना के संग खेली थी,

बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी,

वीर शिवाजी की गाथाएँ

उसको याद ज़बानी थीं।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,

देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,

नकली युद्ध, व्यूह की रचना और खेलना ख़ूब शिकार,

सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना, ये थे उसके प्रिय खिलवार,

महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी

भी आराध्य भवानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,

ब्याह हुआ रानी बन आयी लक्ष्मीबाई झाँसी में,

राजमहल में बजी बधाई ख़ुशियाँ छायीं झाँसी में,

सुभट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी झाँसी में,

चित्रा ने अर्जुन को पाया,

शिव से मिली भवानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजयाली छायी,

किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लायी,

तीर चलानेवाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भायीं,

रानी विधवा हुई हाय! विधि को भी नहीं दया आयी,

निःसंतान मरे राजाजी

रानी शोक-समानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,

राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,

फ़ौरन फ़ौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,

लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया,

अश्रुपूर्ण रानी ने देखा

झाँसी हुई बिरानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

अनुनय विनय नहीं सुनता है, विकट फिरंगी की माया,

व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,

डलहौज़ी ने पैर पसारे अब तो पलट गयी काया,

राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया,

रानी दासी बनी, बनी यह

दासी अब महरानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

छिनी राजधानी देहली की, लिया लखनऊ बातों-बात,

क़ैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,

उदैपूर, तंजोर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात,

जबकि सिंध, पंजाब, ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात,

बंगाले, मद्रास आदि की

भी तो यही कहानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

रानी रोयीं रनिवासों में बेगम ग़म से थीं बेज़ार

उनके गहने-कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,

सरे-आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अख़बार,

'नागपूर के जेवर ले लो' 'लखनऊ के लो नौलख हार',

यों परदे की इज़्ज़त पर—

देशी के हाथ बिकानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

कुटियों में थी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,

वीर सैनिकों के मन में था, अपने पुरखों का अभिमान,

नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,

बहिन छबीलीनेरण-चंडी का कर दिया प्रकट आह्वान,

हुआ यज्ञ प्रारंभ उन्हें तो

सोयी ज्योति जगानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगायी थी,

यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आयी थी,

झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छायी थीं,

मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचायी थी,

जबलपूर, कोल्हापुर में भी

कुछ हलचल उकसानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

इस स्वतंत्रता-महायज्ञ में कई वीरवर आये काम

नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अजीमुल्ला सरनाम,

अहमद शाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,

भारत के इतिहास-गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम,

लेकिन आज जुर्म कहलाती

उनकी जो क़ुरबानी थी।

बुंदेले हरबालों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

इनकी गाथा छोड़ चलें हम झाँसी के मैदानों में,

जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,

लेफ़्टिनेंट वॉकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,

रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वंद्व असमानों में,

ज़ख्मी होकर वॉकर भागा,

उसे अजब हैरानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

रानी बढ़ी कालपी आयी, कर सौ मील निरंतर पार

घोड़ा थककर गिरा भूमि पर, गया स्वर्ग तत्काल सिधार,

यमुना-तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खायी रानी से हार,

विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार,

अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया

ने छोड़ी रजधानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आयी थी,

अबके जनरल स्मिथ सन्मुख था, उसने मुँह की खायी थी,

काना और मंदरा सखियाँ रानी के सँग आयी थीं,

युद्ध क्षेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचायी थी,

पर, पीछे ह्यूरोज़ आ गया,

हाय! घिरी अब रानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

तो भी रानी मार-काटकर चलती बनी सैन्य के पार,

किंतु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,

घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,

रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार पर वार,

घायल होकर गिरी सिंहनी

उसे वीर-गति पानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

रानी गयी सिधार, चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,

मिला तेज़ से तेज़, तेज़ की वह सच्ची अधिकारी थी,

अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,

हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता नारी थी,

दिखा गयी पथ, सिखा गयी

हमको जो सीख सिखानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

जाओ रानी याद रखेंगे हम कृतज्ञ भारतवासी,

यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनाशी,

होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,

हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी,

तेरा स्मारक तू ही होगी,

तू ख़ुद अमिट निशानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

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कविता - एक खयाल ही तो है...



एक ख्याल ही तो है
जो कभी आता है
तो कभी जाता है
कभी गुनगुनाता है
तो कभी कुनमुनाता है
एक खयाल ही तो है...


एक ख्याल ही तो है
जो कभी शबनम-सा झरता है
तो कभी ख्वाब-सा मरता है
कभी परछाई-सा डरता है
तो कभी आह-सा दिल भरता है
एक खयाल ही तो है...


एक खयाल ही तो है
जो कभी दीये-सा जलता है
तो कभी उम्मीद-सा पलता है
कभी शाम-सा ढलता है
तो कभी हमराही-सा चलता है
एक खयाल ही तो है...


एक खयाल ही तो है
जो कभी अलार्म-सा बजता है
तो कभी मेहंदी-सा सजता है
कभी तूफान-सा उठता है
तो कभी धुँए-सा घुटता है
एक खयाल ही तो है...


एक खयाल ही तो है
जो मेरे साथ रहता है
मेरा हर दर्द सहता है
और बात तेरी कहता है
कैसे छोड़ दूँ इस खयाल को
एक खयाल ही तो है...


कमबख्त ये खयाल
बूँदों की तरह उछलता
दिमाग में आता है 
और दिल को बेचैन कर देता है


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शुक्रवार, 5 अगस्त 2022

बाल कहानी - लौट आई नीतू

 


चित्र : गूगल से साभार

एक थी नीतू बुलबुल। प्यारी-सी छोटी-सी बुलबुल। उसकी आवाज बहुत ही सुरीली थी। गाँव की संगीत मंडली की वह एक स्टार सिंगर थी। वैसे भी संगीत मंडली में जितने भी कलाकार थे, वे सभी अपनी-अपनी कला में बहुत प्रसिद्ध थे। जैसे कि बुशी खरगोश कैसियो बजाता था, परी गौरैया पियानो बजाती थी, भोलू भालू ड्रमर था और गीतू तोता संगीत बनाता था। हर शाम वे पार्टी, समारोह और अन्य आयोजनों में शामिल होते थे। उन सभी का गाँव में बड़ा नाम था। नीतू अपनी सुरीली आवाज के कारण घमंडी हो गई थी। एक बार गाँव में....

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गुरुवार, 4 अगस्त 2022

कविता - कैसे कैसे दिन दिखलाए



चित्र : गूगल से साभार

नई सदी के कड़वेपन ने 


कैसे कैसे दिन दिखलाए 


बचपन भूखा, यौवन सूखा 


तंगहाल मरता है जीवन 


देख बुढ़ापा काँपे काठी  


हाय हाय करता है तन-मन 


साँसो के इस उथलेपन ने 


कैसे कैसे दिन दिखलाए 


नई सदी के... 



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बुधवार, 3 अगस्त 2022

कविता - एक चिट्‌ठी पिता के नाम
















                     

चित्र : गूगल से साभार


पिता ! मेरे जन्म की खबर सुनाती 

दाई के आगे जुड़े हाथ 

क्यों हैं अब तक 

जुड़े के जुड़े  

मुझे लेकर क्यों नहीं उठाते 

गर्व से अपना सिर 

क्यों हो जाते हो 

जरूरत से ज्यादा विनम्र 

एक तनाव की पर्त गहरी होती 

देखी है मैंने... 


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कविता - मैं कभी गंगा नहीं बनूँगी

















चित्र : गूगल से साभार


तुम चाहते हो

मैं बनूँ

गंगा की तरह पवित्र

तुम जब चाहे तब

डाल जाओ उसमें 

कूड़ा-करकट, मल-अवशिष्ट

धो डालो अपने

कथित-अकथित पाप

जहाँ चाहे वहाँ बना बाँध

रोक लो

मेरे प्रवाह को

पर मैं...


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कविता - माँ की हार


चित्र : गूगल से साभार


घटते-बढ़ते चाँद को देख-देखकर


माँ भूल गई थी गोल-गोल रोटियाँ बनाना


या कभी ठहर ही नहीं पाया


उसकी आँखों में पूर्णमासी का चाँद


जिसका आकार देती वो


अपनी रोटियों को


चूल्हे पर जलते उसके हाथ...


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कविता - ऋतुएँ गाती हैं





चित्र : गूगल से साभार

कोई राग थिरकता है मेरे भीतर


झिलमिलाती साँझ में


मैं निकल पड़ती हूँ


बीहड़ हवाओं से होते हुए


किसी नदी के किनारे


जीवन  के अनछुए-अनकहे 


पहलुओं से रूबरू होते हुए


तुम भी वहीं कहीं होते हो


हाँ, वहीं कहीं....


दोस्तो, इस अधूरी कविता को  पूरी सुनने का आनंद लीजिए,
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मंगलवार, 2 अगस्त 2022

कविता - यादों की धरोहर




आखिर उसने

थाम ही लिए

अपने नाजुक हाथों में

पेंट और ब्रश

और बना लिया

दीवार को कैनवास।

दे रही है

अपनी कल्पनाओं से

मेरे सपनों को आकार।

वो जानती है

तैयार करनी है उसे

यादों की धरोहर

जो मेरे अकेलेपन की

साथी बने।

इसके लिए

तन-मन-धन समर्पित कर

वह बन गई है

केवल एक कलाकार।

मैं जानती हूँ

इस वक्त उसे

भूख-प्यास नहीं लगती

दोस्तों की याद नहीं सताती

मोबाइल से भी

तोड़ लिया है नाता।

बस उससे केवल

इतना ही है वास्ता

कि गीतों की गुनगुन के साथ

वो तय कर रही है

हमारी चाहतों का सफर।

पापा-मम्मा और भई को

दे सके रंगों का उपहार

इसके लिए खुद को

कर लिया है तैयार।

वो मना रही है पल-पल

रंगों का उत्सव

तैयार होती धरोहर का

रंगीला महोत्सव।

मैं अपने आप से पूछती हूँ -

क्या बेटियाँ ऐसी होती हैं?

और दिल मुस्कराते हुए

कहता है-

हाँ, बेटियाँ ऐसी ही होती हैं।


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कविता - मैं नारी हूँ


चित्र : गूगल से साभार

हे पुरुष...

मैं नारी हूँ

सृष्टि के सृजनकर्ता की अनुपम कृति।

मुझमें समाई है...

लज्जा, संवेदना, संस्कृति...

जब मेरे अधरों पर लरजते गीत है, 

तो जीवन बन जाता संगीत है

पैरों में खनकती पायल की झंकार है,

तो जीवन खुशियों की टंकार है

मैं नारी हूँ।

 

इतिहास गवाह है...

कई युद्ध हुए हैं, केवल मेरे लिए

मेरी हँसी से लहू की नदियाँ बही

मेरे आँसुओं से स्वर्ण लंका ढही

किसी को जीत मिली,

तो किसी को हार

किंतु दांव पर मैं ही लगी हर बार

और तुम अपनी श्रेष्ठता पर

मुस्कराए बार-बार

क्योंकि मैं नारी हूँ।

 

मैं ही धूप में झुलसती

मीलों दूर से गागर भर लाती हूँ

तुम्हारी प्यास बुझाती हूँ

फिर आग में खुद को झोंककर

रोटियाँ सेंकती हूँ

तुम्हारी भूख शांत करती हूँ

तुम्हारे लिए खटती हूँ दिन-रात

फिर भी नजर में तुम्हारी

नहीं है मेरी कोई बिसात

क्योंकि मैं नारी हूँ।

 

मैंने तुम्हारे लिए

तन-मन समर्पित किया

धन समर्पण में भी पीछे नहीं रही

त्याग, तपस्या, अर्पण, समर्पण,

सेवा, बलिदान, श्रद्धा, निष्ठा

कई अलंकारों से अलंकृत मैं

कन्या, युवती और नारी के रूप में

बार-बार शोषित होती रही

तुम हर बार मुझ पर हावी होते रहे

अत्याचार की हदें पार करते रहे

और मैं आँखों में भविष्य का 

अंधकार समेटे सिसकती रही

क्योंकि मैं नारी हूँ।

 

मेरा सृजन कर ईश्वर भी

गर्व से भर उठा

मुझमें समाहित कर दी सृजन शक्ति

और शक्ति स्रोत से 

बहने लगी संसार सलिला 

किंतु इसका श्रेय 

केवल मुझे नहीं तुम्हें भी है

सनातन सत्य है....

नर और नारी

दोनों संसार के सम सूत्रधार

जीवन का आधार

फिर क्यों सर्वोच्च होने के

ले लिए तुमने सारे अधिकार?

 

एक कलाकार भी 

कलाकृति पर

लिखता है अपना नाम

लेकिन मेरी ही कृति को

संसार में मिला तुम्हारा नाम

और मैं रही गुमनाम!

क्या ये नहीं है मेरा अपमान?

 

याद रखो,

मैं केवल नारी नहीं, एक माँ भी हूँ

मेरे हृदय में 

ममता का सागर लहराता है

आँचल में स्नेह रस बरसता है

जब भी मेरी अस्मिता को ललकारोगे

मेरा प्रतिरूप मिटाने आगे आओगे

सहन नहीं कर पाऊँगी मैं

फूल से शूल बन जाऊँगी

दुर्गा से काली बन जाऊँगी

विनाश-महाविनाश का 

ऐसा तांडव रचाऊँगी

कि प्रलय को क्षणभर में 

तुम्हारे पास ले आऊँगी

 

इसलिए, हे पुरुष

मुझे आंदोलित न करो,

अपमानित न करो।

मुझे प्रेरित करो...

उत्साहित करो...

मेरे आगे नहीं, मेरे पीछे भी नहीं,

मेरे साथ-साथ चलो

कदम से कदम मिलाकर चलो

चलते चलो... चलते चलो...

चलते चलो... 

 

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सोमवार, 1 अगस्त 2022

बाल कहानी - जोजो और मोंटी की दोस्ती


चित्र : गूगल से साभार

एक था जंगल, जिसमें रहते थे जोजो और मोंटी बंदर। दोनों ही गहरे दोस्त थे। एक-दूसरे के साथ खेलते-खाते, झूमते-गाते और शरारतें करते हुए दिन बिताते। जोजो जहाँ फुर्तीला और तेज दिमाग का था। वहीं मोंटी थोड़ा आलसी और कमअक्ल था। एक बार दोनों के सामने बड़ी मुसीबत आ गई। जोजो ने तो उस मुसीबत से बचने का उपाय खोज लिया पर क्या मोंटी खोज पाया? क्या जोजो ने अपने दोस्त को मुसीबत से बचाया? इन्हीं सवालों के जवाब जानने के लिए लीजिए ऑडियो की मदद...