चित्र : गूगल से साभार
घटते-बढ़ते चाँद को देख-देखकर
माँ भूल गई थी गोल-गोल रोटियाँ बनाना
या कभी ठहर ही नहीं पाया
उसकी आँखों में पूर्णमासी का चाँद
जिसका आकार देती वो
अपनी रोटियों को
चूल्हे पर जलते उसके हाथ...
इस अधूरी कविता को पूरा सुनने का आनंद लीजिए,
ऑडियो की मदद से...
चित्र : गूगल से साभार
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