बुधवार, 3 अगस्त 2022

कविता - ऋतुएँ गाती हैं





चित्र : गूगल से साभार

कोई राग थिरकता है मेरे भीतर


झिलमिलाती साँझ में


मैं निकल पड़ती हूँ


बीहड़ हवाओं से होते हुए


किसी नदी के किनारे


जीवन  के अनछुए-अनकहे 


पहलुओं से रूबरू होते हुए


तुम भी वहीं कहीं होते हो


हाँ, वहीं कहीं....


दोस्तो, इस अधूरी कविता को  पूरी सुनने का आनंद लीजिए,
ऑडियो की मदद से...


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