कविता - मैं कभी गंगा नहीं बनूँगी
चित्र : गूगल से साभार
तुम चाहते हो
मैं बनूँ
गंगा की तरह पवित्र
तुम जब चाहे तब
डाल जाओ उसमें
कूड़ा-करकट, मल-अवशिष्ट
धो डालो अपने
कथित-अकथित पाप
जहाँ चाहे वहाँ बना बाँध
रोक लो
मेरे प्रवाह को
पर मैं...
इस अधूरी कविता को पूरा सुनने का आनंद लीजिए,
ऑडियो की मदद से...
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