कविता - एक खयाल ही तो है...
एक ख्याल ही तो है
जो कभी आता है
तो कभी जाता है
कभी गुनगुनाता है
तो कभी कुनमुनाता है
एक खयाल ही तो है...
एक ख्याल ही तो है
जो कभी शबनम-सा झरता है
तो कभी ख्वाब-सा मरता है
कभी परछाई-सा डरता है
तो कभी आह-सा दिल भरता है
एक खयाल ही तो है...
एक खयाल ही तो है
जो कभी दीये-सा जलता है
तो कभी उम्मीद-सा पलता है
कभी शाम-सा ढलता है
तो कभी हमराही-सा चलता है
एक खयाल ही तो है...
एक खयाल ही तो है
जो कभी अलार्म-सा बजता है
तो कभी मेहंदी-सा सजता है
कभी तूफान-सा उठता है
तो कभी धुँए-सा घुटता है
एक खयाल ही तो है...
एक खयाल ही तो है
जो मेरे साथ रहता है
मेरा हर दर्द सहता है
और बात तेरी कहता है
कैसे छोड़ दूँ इस खयाल को
एक खयाल ही तो है...
कमबख्त ये खयाल
बूँदों की तरह उछलता
दिमाग में आता है
और दिल को बेचैन कर देता है
इस कविता का आनंद लीजिए, ऑडियो की मदद से...
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