गुरुवार, 1 जुलाई 2021

कविता - चाहत


चित्र : गुगल से साभार

मैं चाहती हूँ

धूप को अपनी

बाँहों में ले लूँ

और हवाओं की

थपकियाँ देकर

सुला दूँ उसे

बादलों के

बिछौने पर

कुछ देर तो ठहर सकूँ

चाँद के गाँव में

घनी जुल्फें बिखराऊँ

चाँदनी की छाँव में

वहाँ सितारों का

मेला लगा है

और हर सितारे में

जुल्फों के जंगल से गुजरकर

इंद्रधनुष तक पहुँचने की

होड़ मची है

बीच में मुस्कान की पगडंडियाँ भी

पार करनी है उन्हें

और केवल मैं ही

साक्षी बनना चाहती हूँ

इन सुखद क्षणों की

इसलिए धूप को

बादल के बिछौने पर सुलाकर

कोहरे की चादर ओढ़ाकर

लगा लिए हैं उम्मीदों के पंख

उड़ चली हूँ नीलगगन में।

इस कविता का आनंद लीजिए, ऑडियो की मदद से...


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