गीतकारी की आज की कड़ी में जानिए गैर फिल्मी गीत - ऐ मेरे वतन के लोगों.... गीत बनने के पीछे की कहानी के बारे में। किस तरह से कवि प्रदीप ने अपने दिल में उठती देशप्रेम की लहरों को शब्दों का किनारा दिया और स्वरसाम्राज्ञी लता जी ने सुरीले स्वर में उसे अमर कर दिया।
ऐ मेरे वतन के लोगों देशभक्ति से परिपूर्ण प्रसिद्ध कवि प्रदीप द्वारा लिखा गया गीत गैर फिल्मी गीत है। जिसे उन्होंने फ़िल्मी जगत् में रहते हुए लिखा था। सन 1962 में भारत-चीन युद्ध में चीन से पराजय के बाद पूरा भारत निराशा के सागर में डूब गया था। 26 जनवरी, 1963 को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने शहीद सैनिकों की याद में दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में एक विशेष श्रद्धांजलि सभा का आयोजन कराया था। इस समारोह में स्वर साम्राज्ञी लता जी को एक गीत गाना था।
कवि प्रदीप से विशेष आग्रह किया गया था कि वे इस कार्यक्रम के लिए एक शानदार गीत लिखें। प्रदीप परेशान हो उठे कि किस प्रकार एक ऐसा गीत लिखा जाए जो अमर हो जाए। हृदय में देशप्रेम की भावनाएँ हिलोंरें ले रही थी पर विचारों को शब्द का जामा पहनाना मुश्किल हो रहा था। एक शाम मुंबई के माहीम बीच पर घूमते हुए अचानक उनके हृदय में ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गीत के शब्द आ गए। मगर पास में न पेन था और न ही कागज़। तब एक अजनबी से पेन माँगा और पान की दुकान से एक सिगरेट का पैकेट ख़रीदा। पैकेट को फाड़कर तत्काल ही वे शब्द उस पर लिख डाले। तो इस तरह से हुई एक अनमोल गीत की रचना।
आलेख, स्वर एवं प्रस्तुति - भारती परिमल
गीतकारी में आप सुनेंगे गीतों के आकार लेने की प्रक्रिया की कहानी। वे गीत जिसे हम कभी दर्द के स्वर में तो कभी खुशाी के अंदाज में गाते हैं, गुनगुनाते हैं। कुछ अनसुने तो कुछ दिल में उतरे तराने और उन तरानों से जुड़ी दिलचस्प बातों का संग्रह है गीतकारी।