शनिवार, 5 जून 2021

ऐ दोस्त


 

ऐ दोस्त

किसी रोज़

वक्त निकाल कर

घर की दहलीज़ पर आ जाना

फुरसत के कालीन पर बैठ

कॉफ़ी की चुस्कियों के साथ

गप्पों की महफ़िल सजाएँगे

मैं-तुम, हम बनकर

बेनूरी शाम रंगीन बनाएँगे।

 

हर तरफ जो उदासी का मंजर है

सूनेपन का बहता दरिया है

उसे पार कर कहकहों की

मीठी ग़ज़ल गुनगुनाएँगे

मैं-तुम, हम बनकर

बेनूरी शाम रंगीन बनाएँगे।

 

वो बचपन की हँसी-ठिठोली

खेलों की आँखमिचोली

मस्ती का मैदान, शरारतों का आँगन

एक दूजे के साथ फिर सजाएँगे

मैं-तुम, हम बनकर

बेनूरी शाम रंगीन बनाएँगे।


ऐ दोस्त

किसी रोज़

वक्त निकाल कर

घर की दहलीज़ पर आ जाना।


  इस कविता का आनंद लीजिए, इस ऑडियो के माध्यम से...



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