मैं एक बूँद हूँ....
मैं एक बूँद हूँ। मेरी असलियत से अनजान आप मुझे पानी की एक बूँद कह सकते हैं या फिर ओस की एक बूँद भी। नदी, झरनें, झील, सागर की लहरों का एक छोटा रूप भी। लेकिन मेरी सच्चाई यह है कि मैं पलकों की सीप में कैद एक अनमोल मोती के रूप में सहेज कर रखी हुई आँसू की एक बूँद हूँ।
इस सृष्टि के सृजनकर्ता ने जब शिशु को धरती पर उतारा तो उसकी आँखों में मुझे पनाह दी। ममत्व की पहचान बनकर मैं बसी थी माँ की पलकों में और धीरे से उतरी थी उसके गालों पर। गालों पर थिरकती हुई बहती चली गई और फिर भिगो दिया था माँ का आँचल। उस समय मैं खुशियों की सौगात बनकर माँ की आँखों से बरसी थी। दुआओं का सागर उमड़ा था और उसकी हर लहर की गूँज में शिशु का क्रंदन अनसुना हो गया था।
रात की खामोशी में जब चाँद बादलों की ओट में लुका-छिपी खेलते तारों की टीम-टीम के साथ उनकी गुनगुन सुनता है, अपनी दूधिया चाँदनी बिखेरता है, तो उस एकांत में मैं किसी विरहिणी के आँखों के उजाड़ जंगल से आजाद होती हूँ। उसके गालों के मखमली मैदान से होकर गुजरती हूँ। होठों की पंखुड़ी पर कुछ पल ठहरती हूँ और अपने खारेपन को भूल जाती हूँ। तब बीते दिनों की यादों में खोई उस विरहिणी की गुलाबी पंखुडिय़ाँ भी कुछ पल के लिए फैलकर मेरी जलन का अहसास भूल जाती है। मैं चाहूँ तो उसे अपने खारेपन में डूबो दूँ और मैं चाहूँ तो उसके अधरों पर मुस्कान की कलियों को नृत्य करने पर विवश कर दूँ।
एक नन्हीं-सी बूँद... मुझमें ही समाया है सारा संसार। कभी मैं खुशी के क्षणों में आँखों से रिश्ता जोड़ती हूँ, तो कभी गम के पलों में। बरसना तो मेरी नीयति है। मैं बरसी हूँ तो जीवन बहता है। जीवन का बहना जरूरी है। मैं ठहरी हूँ, तो जीवन ठहरा है। जीवन का हर पल दूजे पलों से अनजाना होकर किसी कोने में दुबक गया है। इसलिए इस ठहराव को रोकने के लिए मेरा बरसना जरूरी है।
मुझमें जो तपन है, वो रेगिस्तान की रेत में नहीं, पिघलती मोम की बूँदों में नहीं, सूरज की किरणों में नहीं और आग की चिंगारी में भी नहीं। मुझमें जो ठंडक है, वो चाँद की चाँदनी में नहीं, सुबह-सुबह मखमली घास पर बिखरी ओस की बूँदों में नहीं, पूरवा बयारों में नहीं और हिम शिखर से झरते हिम बिंदुओं में भी नहीं। मेरी तपन, मेरी ठंडक अहसासों की एक बहती धारा है, जो अपनी पहचान खुद बनाती है।
मैं बूँद हूँ। कभी पलकों पर मेरा बसेरा तो कभी अधरों पर मेरा आशियाना। मुझे तो हर हाल में, हर अंदाज में जीना है। मैं जी रही हूँ। मैं जीती रहूँगी। जब तक मैं इस धरती पर हूँ, जिंदगी गुनगुनाएगी, मुसकराएगी, रिमझिम फुहारों-सी भीगेगी और अपनी एक कहानी कह जाएगी। कहानियाँ बनती रहे... जिंदगियाँ गुनगुनाती रहे...।
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बहुत ही सुंदर ब्लॉग ।अच्छी पोस्ट |हार्दिक शुभकामनायें |
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