अंतर तो अंतर होता है
छोटा या बड़ा कहाँ होता है?
शाम ढलते ही घर आ जाना,
देर रात तक बाहर रहना गलत होता है।
पर उसे बेवक्त आने-जाने से,
कोई कहाँ टोकता है?
अंतर तो अंतर होता है...
घर पर मेहमान आए हैं,
किताबें बंद कर यहाँ आना,
दो कप चाय बना लेना।
साथ में कुछ नाश्ता भी देना होता है
पर उसे खाली कप-प्लेट
उठाने को भी
कोई कहाँ टोकता है?
अंतर तो अंतर होता है...
बर्थडे पार्टी में नई ड्रेस और
दोस्तों का घर आना ही काफी होता है
पर उसे बर्थडे पर
बाहर मौज-मस्ती करने से
कोई कहाँ टोकता है?
अंतर तो अंतर होता है...
खाने में ना-नुकुर करना अच्छी बात नहीं
जो थाली में आए, सब खाना होता है।
पर उसे दाल में से
धनिया-नीम निकालने से भी
कोई कहाँ टोकता है?
अंतर तो अंतर होता है...
रोटियाँ फूल नहीं रही,
गोल बनाने की और प्रेक्टिस करो
स्वाद लेने के लिए
स्वाद सीखना भी होता है।
पर उसे हर बार
एक नई फरमाईश करने से
कोई कहाँ टोकता है?
अंतर तो अंतर होता है...
साफ-सफाई का ध्यान रखो,
कपड़े तह कर अलमारी में रखो।
सामान फैलाकर रखना बुरा होता है।
पर उसे गीले फर्श पर
जूते-चप्पल के निशान बनाने से भी
कोई कहाँ टोकता है?
अंतर तो अंतर होता है...
रोजमर्रा के जीवन में ये अंतर देखने को मिल ही जाता है। इसी कविता का आनंद लीजिए,
ऑडियो के माध्यम से...
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