गुरुवार, 15 दिसंबर 2022

कविता - कुछ कह रही है ज़िंदगी...

सुनो,
धीरे से कुछ
कह रही है ज़िंदगी
कह रही है –
मैं एक आवाज़ हूँ
जो सुन सको तो…
मैं एक गीत हूँ
जो गुनगुना सको तो…
मैं एक मुस्कान हूँ
जो होठों पर सजा सको तो…
मैं एक खुशी हूँ
जो ग़म भूला सको तो…
मैं एक खुशबू हूँ
जो साँसों में भर सको तो…
मैं एक याद हूँ
जो दिल में रख सको तो…
मैं एक समंदर हूँ
जो आँखों में समेट सको तो…
मैँ एक उम्मीद हूँ
जो देख सको तो…
मैं एक यकींन हूँ
जो समझ सको तो…
मैं एक खयाल हूँ
जो महसूस कर सको तो…
और अंत में-
मैँ “हूँ-नहीं हूँ” के बीच की
एक सच्चाई हूँ
जो मुझे जी सको तो…!!!

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