हैलो दोस्तो, बात करते हैं– फिल्मी गीतों के पीछे की कहानी
के बारे में। गीत है – 1942 अ लवस्टोरी का प्यारा सा गीत – एक लड़की को देखा तो ऐसा
लगा… जैसे खिलता गुलाब, जैसे शायर का ख्वाब जैसे उजली किरण, जैसे बन में हिरन, जैसे
चांदनी रात, जैसे नरमी की बात जैसे मन्दिर में हो एक जलता दिया…. 21 रूपकों से सजा
जावेद अख्तर का लिखा ये गीत दिल में मखमली अहसास जगाता है। जावेद अख्तर यानी मशहूर
शायर जाँनिसार अख्तर के बेटे और अभिनेता निर्माता निर्देशक फरहान हख्तर के पिता। जिनके
लिखे गीत आज भी युवाओं को रोमांचित कर देते हैं।
कुमार शानू की गायकी, पंचम
दा का संगीत और जावेद अख्तर के बोल से सजा ये गीत 1994 से लेकर अब तक युवाओं की पसंद
बना हुआ है और कोई शक नहीं कि आगे भी रहेगा। क्योंकि इस गीत में प्यार है, जादूगरी
है, कल्पनाओं का सजीला आसमां है।
फिल्म 1942 अ लवस्टोरी सन् 1994 में रीलीज हुई थी। दोस्तों,
आप सभी को आश्चर्य होगा कि जब यह फिल्म बन रही थी, तब इस फिल्म में यह गाना था ही नहीं।
फिल्म के निर्देशक थे विधु विनोद चोपड़ा और उन्हें असिस्ट कर रहे थे संजय लीला भंसाली।
फिल्म को लेकर एक मीटिंग हो रही थी जिसमें फराह खान, जावेद अख्तर, पंचम दा सहित कई
लोग मौजूद थे। फिल्म की स्क्रीप्ट सुनने के बाद जावेद अख्तर ने एक सीन को लेकर कहा
कि यहाँ पर एक गीत होना चाहिए। सभी की राय थी कि इस सीन में अभी तो लड़के ने बस में
लड़की को पहली बार देखा है, ना कोई बात ना कोई मुलाकात फिर गीत कैसे? लेकिन जावेद साहब
अपनी बात पर अड़े रहे कि यहाँ पर एक गीत होना ही चाहिए।
आखिर जावेद जी से कहा गया कि ठीक है, अगले बुधवार को फिर
से चार बजे मीटिंग करते हैं। तब आप इस सीन से जुड़ा गाना लिखकर ले आइएगा। बुधवार को
सही समय पर जावेद साहब मीटिंग के लिए घर से निकल तो गए लेकिन उनके पास कोई गीत नहीं
था। वे रास्ते भर यही सोचते रहे कि जाकर कहूँगा क्या? उस समय वे स्वयं ही अपनी कार
ड्राइव किया करते थे। गीत के बारे में सोचते-सोचते वे कार चला रहे थे। रास्ते में थियेटर
के बाहर ट्रक खड़ा दिखा। उसे देखकर ही दिमाग में गीत के बोल आए।
बस फिर क्या था, मीटिंग
में जब गीत के बारे में पूछा गया तो उन्होंने गीत के बोल बताते हुए कहा – गीत के बोल
रहेंगे - एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा… फिर उसे जैसे ये जैसे वो… इस तरह से अलग-अलग
रूपक से बाँधा जा सकता है। जावेद साहब को लगा कि उनका यह आइडिया किसी को पसंद नहीं
आएगा और गीत लिखने की बात टाल दी जाएगी लेकिन हुआ कुछ उल्टा ही… क्योंकि एक अमर गीत
की तैयारी जो चल रही थी।
उस समय वहाँ संगीतकार राहुल
देव बर्मन भी मौजूद थे। उन्होंने जावेद जी से तुरंत कहा, 'लिखो इस गाने को तुरंत।' अभी चाहिए। इतनी जल्दबाजी
होगी, इसका अंदाजा तो जावेद साहब को भी नहीं था। पर स्थिति केा देखते हुए उन्होंने
तुरंत एक अंतरा तो लिख ही दिया। जैसे ही अंतरा तैयार हुआ कि पंचम दा ने दो मिनट में
उस अंतरे की धुन तैयार कर दी।
सात रूपकों से सजा ये पहला अंतरा तो उसी समय तैयार हो गया पर बाकी के रूपकों
से सजे अंतरों को तैयार करने में तीन से चार दिन लग गए। फिल्म आई और इसके सारे गीत
खूब पसंद किए गए। खास कर ये गीत तो लोगों की जुंबा पर चढ़ गया था। अभिनेत्री मनीषा कोइराला
भी इस गीत में बयां होती लड़की जैसी ही प्यारी और मासूम दिखी। फिल्म के संगीतकार आर.डी
बर्मन यानी हमारे प्यारे पंचम दा इस गीत की लोकप्रियता को अपने जीते जी नहीं देख सके।
लेकिन इस गीत की गुनगुनाहट के साथ सभी उन्हें जरूर याद करते हैं।
दोस्तों, गीतकारी में ऐसे ही गीतों की कड़ियाँ जुड़ती चली जाएँगी और हम जानेंगे
गीतों के पीछे की कहानी। तो अगली बार फिर एक नए गीत के साथ मुलाकात होगी। आपकी दोस्त
भारती परिमल
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