बुधवार, 9 जून 2021

कविता - हवाएँ


चित्र : गुगल से साभार

हवाएँ होती हैं,

बँजारों की तरह।

नहीं ठहरतीं,

किसी एक जगह।

चलती रहती हैं,

यायावर की तरह।

बहती रहती हैं,

नदी की तरह।

अपने साथ

लिए होती हैं,

कई तूफान,

कई आँधियाँ,

यादों की तरह।

भागती रहती हैं,

सैलाब की तरह।

जागती रहती हैं,

अलाव की तरह।

उड़ती रहती हैं,

पंछियों की तरह।

कुलाँचें भरती हैं,

हिरनी की तरह।

उछलती रहती हैं,

लहरों की तरह।

हवाएँ होती हैं,

बँजारों की तरह।

इस कविता का आनंद लीजिए,ऑडियो की मदद से...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें