मंगलवार, 26 जुलाई 2022

कविता - नशा










चित्र : गूगल से साभार

बचपन में माँ के दुलार का नशा


सूरज के उगने और डूबने का 


पीतल की जल भरी थाली में


चाँद के उतरने का नशा


नशा माँ के कच्चे गाढ़े दूध का


तितली का और फूल का नशा


भाषा की भूल-भूलैया में भटकने का 


पत्तों का, बूँदों का, कागज की नावों का नशा


नशा धूप का, परछाई का


बड़ा हुआ तो...


इस अधूरी कविता को पूरा सुनने का आनंद लीजिए,


ऑडियो की मदद से...



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