बुधवार, 20 जुलाई 2022

कविता - मैं और मेरा अकेलापन


मैं और मेरा अकेलापन

रिश्तों का ताना-बाना बुनते हैं।

रात की गहरी खामोशी में

एक-दूजे को सुनते हैं

तब

यादों की शबनम झरती है

भीगी पलकों से गालों पर

मोती-सी परियाँ उतरती हैं।

होठों की सीप खुलकर

परियों को बाँहों में लेती हैं

मुस्कानों की अठखेलियों में

यादें झूम-झूम जाती हैं

अकेलापन

मुझसे नाता तोड़

शबनम में घुल जाता है

मैं यादों के साए में

खुद से बातें करती हूँ

शबनम की परियाँ

मुझे छूकर

मुझमें ही समा जाती है

और भोर की पहली किरण के साथ

एक नई उम्मीद बन

मुस्कान को गहरा करती है

गहराती मुस्कान के साथ

फिर रात की खामोशी छा जाती है

मैं और मेरा अकेलापन

रिश्तों का ताना-बाना बुनते हैं। 


इस कविता का आनंद लीजिए, ऑडियो की मदद से...


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें