गुरुवार, 21 जुलाई 2022

कविता - क्या सोचती होगी धरती














कवयित्री - अनुराधा सिंह


चित्र : गूगल से साभार 

मैंने कबूतरों से सब कुछ छीन लिया

उनका जंगल

उनके पेड़

उनके घोंसले

उनके वंशज

यह आसमान जहाँ खड़ी होकर

आँजती हूँ आँख

टाँकती हूँ आकाश कुसुम बालों में

तोलती हूँ अपने पंख

यह पंद्रहवा माला मेरा नहीं उनका था

फिर भी बालकनी में रखने नहीं देती उन्हें अंडे

मैंने बाघों से शौर्य छीना...



इस कविता का आनंद लीजिए, ऑडियो की मदद से...


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