‘कंचा’ पाठ में लेखक टी. पद्मनाभन ने बच्चों के बालमन की सहजता और कल्पना के रूपों का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है। कैसे एक बालक अपने खेलने के सामान को अन्य सभी चीजों से ज्यादा महत्त्व देता है। कैसे वह हर कीमत पर अपने खिलौनों या खेलने के सामान को संभाल कर रखता है। इस कहानी में लेखक ने भी अप्पू के माध्यम से बच्चों के स्वभाव को दिखाने का प्रयास किया है। हमने यहाँ पर इसी कहानी को कविता में बदला है। यह मात्र एक प्रयास है, बच्चों को साहित्यिक गतिविधि से जोड़ने का और उनके भीतर छिपी रचनात्मकता को निखारने का।
कंचा
एक था अप्पू, गोल-मटोल गप्पू
अपनी ही दुनिया में वो रहता था,
हरदम सपनों में खोया रहता था।
रंग-बिरंगे कंचे उसको प्यारे थे,
नीले-लाल-गुलाबी रंगों से सजे वो सारे
थे।
कक्षा में जब सारे बच्चे
पढ़ाई में ध्यान लगाते थे,
अप्पू भैया कंचों में खो जाते थे।
मास्टरजी की थी आवाज ऊँची,
क्योंकि कक्षा में हो रहा था शोर
अप्पू की दुनिया में था कंचों का जोर।
धीरे-धीरे रूचि से सब पढ़ने लगे,
आवाज धीमी कर मास्टरजी
उनमें ज्ञान की मूरत गढ़ने लगे...
आगे क्या हुआ?
यह जानने के लिए पूरी कविता का आनंद लीजिए,
ऑडियो की मदद से...
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