शनिवार, 13 मई 2023

गीतकारी – 6 नीले गगन के तले धरती का प्यार पले… हमराज़


हैलो दोस्तो,


गीतकारी में बात करते हैं– फिल्मी गीतों के पीछे की कहानी के बारे में। आज के गीत के साथ हम सैर करते हैं प्रकृति की घनी वादियों की, नीले आसमां की। जी, हाँ दोस्तों आज का गीत है नीले गगन के तले, धरती का प्यार पले…. फ़िल्म ’हमराज़’ का ये सुरीला गीत आप सभी ने कई बार सुना होगा, पर क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि इस गीत का मुखड़ा और अंतरा एक ही धुन पर रखा गया है? संगीत प्रेमियों से यह बात छिपी हुई नहीं है। लेकिन आम लोग तो इस बारे में सोचते भी नहीं है, वो तो गीत अच्छा लगा, गुनगुनाया और दिल में बसा लिया। बस गीतों के साथ इतना ही संबंध हम जोड़ पाते हैं लेकिन जब एकांत में गीतों से, गीतों के रागों से, गीतों के बोलों से दोस्ती करते हैं, तो उसकी परत दर परत खुलती चली जाती है, उससे नाता गहरे से गहरा होता चला जाता है।
तो बात है – नीले गगन के तले, धरती का प्यार पले गीत की। यह गीत पहाड़ी और भूपाली दोनों रागों का मिश्रण है। साहिर जी के बोल, रवि साहब का संगीत और महेन्द्रकपूर जी की आवाज से सजा ये गीत दार्शनिकता की चरम सीमा को छूता हुआ महसूस होता है – जैसे कि ये पंक्तियाँ – नदिया का पानी, दरिया से मिल के, सागर की ओर चले.. नीले गगन के तले धरती का प्यार पले, ऐसे ही जग में आती है सुबहें ऐसे ही शाम ढले।
इस गीत के लिए गायक महेन्द्र कपूर को सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला था। हमराज़ फिल्म के गीत उनके कैरियर के महत्वपूर्ण गीत साबित हुए। दोस्तों, उस दौर में बी. आर. चोपड़ा की फ़िल्मों के सारे गाने मोहम्मद रफ़ी ही गाते थे। कहा जाता है कि 1962 में एक फिल्म में गाई जाने वाली कव्वाली को लेकर रफी साहब और बी.आर. चोपड़ा के बीच मनमुटाव हो गया और फिर उन्होंने अपने बैनर से रफी साहब को अलविदा कहते हुए महेन्द्र कपूर से नाता जोड़ लिया।
दरअसल चोपड़ा साहब वो कव्वाली रफी और महेन्द्रकपूर दोनों से गवाना चाहते थे और रफी साहब का कहना था कि महेन्द्रकपूर भी उनके अंदाज में ही गाते हैं। ऐसे में दोनों की आवाज का उतार-चढ़ाव एक जैसा ही होने के कारण कव्वाली में कोई नवीनता नहीं आ पाएगी। और रफी साहब ने इसे गाने से मना कर दिया और फिर चोपड़ा साहब की उस फिल्म में ये कव्वाली महेन्द्र कपूर और बलवीर ने गाई।
दूसरी तरफ गीत नीले गगन के तले…. इसे मुखड़ा अंतरा मुखड़ा अंतरा इस तरह के क्रम में न गाते हुए एक सुर में ही गाया गया है। सच्चाई से सजे सादगी के बोलों को सुर के धागों में पिरोते हुए बड़ी ही सरलता से गाया गया है। वास्तव में ये गीत धुन पर लिखा गया है। वैसे साहिर जी यह बिलकुल पसंद नहीं करते थे कि धुन पहले बनाई जाए और बोल बाद में लिखे जाए।
संगीतकार रवि जी ने स्वयं इस बात की पुष्टि करते हुए कहा था कि दरअसल हमराज़ फिल्म में ऐसी एक सिचुएशन बनी कि पहाड़ों में एक धुन लगातार गूँज रही है। ये गूँजती हुई धुन बनाने के लिए उनसे कहा गया। और रवि साहब ने जो धुन बनाई, वो सभी को बहुत पसंद आई।
अब दोस्तों रवि साहब ने जब अपनी धुन की तारीफ सुनी तो उन्होंने उस धुन पर गाना बनाने का सुझाव दिया। उन्होंने तो केवल मुखड़े की ही धुन बनाई थी। अंतरे की तो बनाई ही नहीं थी। अब धुन पर बोलों को फिट करने से परहेज करनेवाले साहिर जी को भी यह धुन इतनी पसंद आई थी कि वे दूसरे दिन इसके मुखड़े पर ही गीत लिख कर ले आए। यहाँ तक कि पूरे गीत के अंतरे भी उन्होंने इसी धुन पर तैयार कर लिए थे। और इस तरह से मुखड़े और अंतरे की धुन में कोई अंतर न होते हुए पूरा एक गीत हमारे सामने आ गया। साहिर का मतलब जानते हैं आप? साहिर यानी जादूगर। इस जादूगर पर हमेशा यह आरोप लगते रहे हैं कि वे अपने गीतों में उर्दू लफ्ज़ों का ही इस्तेमाल करते हैं। इस आरोप को नकारा साबित करते हुए उन्होंने इस गीत में अधिक से अधिक हिंदी शब्दों का प्रयोग किया है। नदिया का पानी दरिया से मिलके सागर की ओर चले, बलखाती बेलें मस्ती में खेलें पेड़ों से मिल के गले… पूरा गीत हिंदी के मनभावन शब्दों में पिरोया गया है।
राजकुमार और विम्मी पर फिल्माया गया ये गीत एक सदाबहार गीत है। इस गीत की सादगी इस बात का सुबूत है कि किसी गीत को कालजयी बनाने के लिए न तो बहुत ज्यादा वाद्यंत्रों की जरूरत है और न ही भारी भरकम शब्दों की। बस दिल से निकले बोल, दिल से निकली आवाज और दिल से बनी धुन ही गीत को अमर करने के लिए काफी है।
तो दोस्तो, इस तरह बना एक सदाबहार गीत – नीले गगन के तले धरती का प्यार पले…
गीतकारी में ऐसे ही गीतों की कड़ियाँ जुड़ती चली जाएँगी और हम जानेंगे गीतों के पीछे की कहानी। तो अगली बार फिर एक नए गीत के साथ मुलाकात होगी। आपकी दोस्त भारती परिमल

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