गीतकारी में बात करते हैं– फिल्मी गीतों के पीछे की कहानी के बारे में। आज का गीत है फिल्म कश्मीर की कली का प्यारा सा गीत –
ये चांद सा रोशन चेहरा, ज़ुल्फ़ों का रंग सुनहरा ये झील सी नीली आँखें, कोई राज़ है इनमें गहरा तारीफ़ करूँ क्या उसकी, जिसने तुम्हें बनाया
1964 में शक्ति सामंत द्वारा निर्मित और निर्देशित कश्मीर की कली फिल्म में संगीत ओ॰ पी॰ नय्यर का है और गीत लिखे हैं एस॰ एच॰ बिहारी ने। गीतकार एस.एच बिहारी यानी कि शुमसुल हुदा बिहारी, भारतीय फिल्म जगत के गीतकारों की सूची में शामिल एक जाना-पहचाना नाम है। उनके गीतों में चांद अक्सर रहता था। इस फिल्म में अभिनेता शम्मी कपूर के साथ अभिनेत्री की भूमिका निभाई थी शर्मिला टैगोर ने। दरअसल इसी फिल्म से शर्मिला टैगोर ने डेब्यू किया था। अभिनेता शम्मीकपूर के सदाबहार लटके-झटके और शर्मिला जी की मासूमियत से भरी मुस्कान ने फिल्म को हीट फिल्मों की श्रृंखला में लाकर खड़ा कर दिया। इसके साथ ही एसएच बिहारी के गीत, ओपी नैयर के संगीत और मुहम्मद रफी एवं आशा भोसले की आवाज का ऐसा जादू चला कि आज भी इसके गाने खूब गुनगुनाये जाते हैं।
दोस्तों, जब फिल्म के गीतों की बात चल ही रही है तो एक राज़ की बात से परदा उठाती हूँ – पहले इस फिल्म का संगीत फिल्मी दुनिया के जानेमाने संगीतकार शंकर जयकिशन देने वाले थे। लेकिन ओ.पी. नैयर जी ने शम्मीकपूर जी को अपना संगीत सुनाकर उनका दिल जीत लिया। सुर लय और ताल की बारीकियों की समझ रखने वाले शम्मीकपूर उनके संगीत से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने बतौर संगीतकार ओपीनैयर को ही अपनी इस फिल्म में लेने का अनुरोध शक्तिसामंत जी से किया। इस तरह ओपी नैयर के संगीत का जादू इस फिल्म में चला और क्या खूब चला। फिल्म का गीत – ये चाँद सा रोशन चेहरा… में एक जुमला है – तारीफ़ करूँ क्या उसकी जिसने तुम्हें बनाया। शम्मी कपूर चाहते थे कि अपनी प्रेमिका के प्रति अपने जज़्बे को उभारने के लिए इस जुमले को अलग-अलग तरह से दोहराया जाए। जब उन्होंने अपना ये सुझाव नैयर जी के सामने रखा तो उन्हें यह बात बिलकुल पसंद नहीं आई वे अड़ गए कि इस तरह से गाना लंबा और उबाऊ हो जाएगा। शम्मी जी दुखी हो कर रफ़ी साहब के पास गए। रफ़ी साहब ने उनकी परेशानी सुनी उस पर सोचा और फिर कहा कि मैं नैयर को समझाता हूँ। नैयर जी ने उनसे भी वही कहा जो शम्मी जी से कहा था, पर रफ़ी साहब ने उन्हें ये कहकर मना लिया कि अगर वो ऐसा चाहता है तो एक बार कर के देखते हैं अगर तुम्हें पसंद नहीं आया तो हटा देना।
जब गीत पूरा बना तो सब को अच्छा लगा और शम्मी कपूर जी के इस प्रयोग को नैयर साहब और रफ़ी साहब दोनों ने सराहा।
दोस्तों, ये घटना इस बात का भी प्रमाण है कि आगे चलकर शम्मी कपूर और रफ़ी साहब की जोड़ी इतनी सफ़ल क्यूँ हुई। इस फिल्म के सभी गीत कर्णप्रिय हैं। हर गीत में शम्मी जी का रूमानियत से भरा एक अलग अंदाज ही सामने आता है। जब शम्मी कपूर नैयर की धुनों पर नाचते हैं तो लगता है वादी भी उनके साथ नाच रही हो। वैसे भी शम्मी जी के बारे में यह बात प्रसिद्ध है कि वे अपने गीतों में गीतों की पंक्तियों पर नहीं, शब्दों पर नहीं बल्कि अक्षर – अक्षर पर थिरकते हैं। उनका अंग-अंग थिरकता था। उनकी हर अदा ही निराली होती थी। तभी तो उनके उपर फिल्माए गए कश्मीर की कली फिल्म के गीतों में कश्मीर की केसर की क्यारियाँ भी झूम उठी है। सारी वादियों में जैसे प्यार समा गया है।
बताया जाता है कि शूटिंग शुरू होते ही कश्मीर में वर्षा शुरू हो गयी। जो लगातार 25 दिन चलती रही, फिल्म यूनिट ने बोरी-बिस्तर बांध लिया था कि ऐसे हालात में शूटिंग करना संभव ही नहीं है इसलिए वापस लौटा जाए लेकिन शम्मी जी की जिद के कारण यूनिट रुक गयी। और फिर 29 दिन तक बारिश नहीं हुई। आखिर कश्मरी की कली को कश्मीर की बहारों में ही खिलना था। तो कली खिली और क्या खूब खिली कि इसकी महक आज भी हमारे अहसासों में समाई हुई है।
दोस्तों, गीतकारी में ऐसे ही गीतों की कड़ियाँ जुड़ती चली जाएँगी और हम जानेंगे गीतों के पीछे की कहानी। तो अगली बार फिर एक नए गीत के साथ मुलाकात होगी। आपकी दोस्त भारती परिमल
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