गुरुवार, 28 जुलाई 2022
कविता - कंचा
‘कंचा’ पाठ में लेखक टी. पद्मनाभन ने बच्चों के बालमन की सहजता और कल्पना के रूपों का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है। कैसे एक बालक अपने खेलने के सामान को अन्य सभी चीजों से ज्यादा महत्त्व देता है। कैसे वह हर कीमत पर अपने खिलौनों या खेलने के सामान को संभाल कर रखता है। इस कहानी में लेखक ने भी अप्पू के माध्यम से बच्चों के स्वभाव को दिखाने का प्रयास किया है। हमने यहाँ पर इसी कहानी को कविता में बदला है। यह मात्र एक प्रयास है, बच्चों को साहित्यिक गतिविधि से जोड़ने का और उनके भीतर छिपी रचनात्मकता को निखारने का।
कंचा
एक था अप्पू, गोल-मटोल गप्पू
अपनी ही दुनिया में वो रहता था,
हरदम सपनों में खोया रहता था।
रंग-बिरंगे कंचे उसको प्यारे थे,
नीले-लाल-गुलाबी रंगों से सजे वो सारे
थे।
कक्षा में जब सारे बच्चे
पढ़ाई में ध्यान लगाते थे,
अप्पू भैया कंचों में खो जाते थे।
मास्टरजी की थी आवाज ऊँची,
क्योंकि कक्षा में हो रहा था शोर
अप्पू की दुनिया में था कंचों का जोर।
धीरे-धीरे रूचि से सब पढ़ने लगे,
आवाज धीमी कर मास्टरजी
उनमें ज्ञान की मूरत गढ़ने लगे...
आगे क्या हुआ?
यह जानने के लिए पूरी कविता का आनंद लीजिए,
ऑडियो की मदद से...
बुधवार, 27 जुलाई 2022
कविता - अपनी भाषा
उदास हुए हम
अपनी भाषा में
मुस्कराए, खिलखिलाए
अपनी भाषा में।
प्रेम पत्र लिखे
लिखी प्रेम कविताएँ
धड़कते रहे दिल
अपनी भाषा में।
उत्सवों मे रात भर
नाचती रही
हमारी भाषा...
इस अधूरी कविता को पूरा सुनने का आनंद लीजिए, ऑडियो की मदद से...
कविता - एक नम सी रागिनी हूँ मैं
कवयित्री - भारती सिंह
चित्र : गूगल से साभार
तुम मुझे देखो तो एक बुत हूँ मैं
तुम मुझे छुओ तो एक अहसास हूँ मैं
तुम मुझे सोचो तो एक खयालात हूँ मैं
तुम मुझे छेड़ो तो सुर हूँ मैं
साज पर रखो तो संगीत हूँ मैं
होठों तक लाओ तो सरगम हूँ मैं
अगर तुम मुझे गुनगुनाओ तो...
इस अधूरी कविता का पूरा आनंद लीजिए,
ऑडियो की मदद से...
कविता - अक्स
उदास शाम की तरह
मन चला जा रहा है
एक सुनसान-सी
गीली पगडंडियों पर
पैरों को पत्तों की नमी
देती है तुम्हारे छुअन का अहसास
मन बावरा-सा गाता
बढ़ता चला जा रहा है...
इस अधूरी कविता को पूरा सुनने का आनंद लीजिए,
इस ऑडियो की मदद से...
मंगलवार, 26 जुलाई 2022
कविता - नशा
बचपन में माँ के दुलार का नशा
सूरज के उगने और डूबने का
पीतल की जल भरी थाली में
चाँद के उतरने का नशा
नशा माँ के कच्चे गाढ़े दूध का
तितली का और फूल का नशा
भाषा की भूल-भूलैया में भटकने का
पत्तों का, बूँदों का, कागज की नावों का नशा
नशा धूप का, परछाई का
बड़ा हुआ तो...
इस अधूरी कविता को पूरा सुनने का आनंद लीजिए,
ऑडियो की मदद से...
कविता - घास की हरी पत्तियों में
घास की हरी पत्तियों में
छिपी हुई पगडंडियाँ थीं
जिन पर हम चलते थे।
हम चाहते थे कोई साँप हमें डस ले
मगर हर साँप चौंककर रास्ता छोड़ देता था
मृत्यु हर बार जीने का एक मौका देती थी
और हम जिए चले जाते थे
अपने लिए कम
दूसरों के लिए ज्यादा
हम खुश दिखते थे
क्योंकि....
इस अधूरी कविता को पूरा सुनने का आनंद लीजिए, ऑडियो की मदद से...
कविता - कवि
कवि लिखता है कविता
क्रांति की
शांति की
सद्भाव और भाईचारे की
कवि के उन शब्दों के कायल हैं हम
कवि की उस वेदना से घायल हैं हम
हम…
हम छोटे लोग
हम सामान्य लोग
हम बौने-अदने-से लोग
कवि के साहसी….
इस अधूरी कविता को पूरा सुनने का आनंद लीजिए,
ऑडियो की मदद से…
कविता - अब मैं खुश हूँ
तुम बड़े खुश थे
उस औरत की कामयाबी से
जो तुम्हारी कुछ भी नहीं लगती थी
तुम्हारी चहक ने याद दिलाया
कभी मैं भी ‘कुछ’ थी
और
तुम रीझ गए थे मेरे ‘कुछ’ होने पर
ही
सोचा….
इस अधूरी कविता को पूरा सुनने का आनंद लीजिए,
ऑडियो की मदद से…
बाल कविता - पर्यावरण से मित्रता
कवि – मनोज कुमार गुप्ता
आओ पेड़ों को दोस्त बनाएँ
इनके बारे में कुछ जानें
ये जीवन के हैं आधार
सभी गुणों की हैं ये खान
फल और फूल हमें देते हैं
वर्षा को आमंत्रित करते हैं
आओ पेड़ों को दोस्त बनाएँ…
इस अधूरी कविता को पूरी सुनने का आनंद लीजिए,
ऑडियो की मदद से…
बाल कविता - प्यासी चिड़िया
मेरी बालकनी में आईप्यासी चिड़िया रानीइधर-उधर वो ढूँढ रही
थीआखिर कहाँ है पानी?खूब जोर की प्यास लगी
थीफुदक-फुदक चिल्लाईपिंकी ने जब यह सब
देखाकिचन में दौड़ी आईमम्मा-मम्मा बालकनी
में…..
इस अधूरी कविता को
पूरी सुनने का आनंद लीजिए, ऑडियो की मदद से…
सोमवार, 25 जुलाई 2022
बाल कविता – चिड़िया रानी
चिड़िया रानी चिड़िया रानी
हम सबको है खूब सिखाती
सुबह-सुबह मेरे आँगन में
आकर हमको गीत सुनाती
चिड़िया रानी चिड़िया रानी
फुदक-फुदक कर दाना खाती
तरह-तरह के रंगो वाली
हम सबके मन को बहलाती
चिड़िया रानी चिड़िया रानी….
इस अधूरी कविता को पूरी सुनने का आनंद लीजिए, ऑडियो की मदद से…
शुक्रवार, 22 जुलाई 2022
गुरुवार, 21 जुलाई 2022
कविता - क्या सोचती होगी धरती
मैंने कबूतरों से सब कुछ छीन लिया
उनका जंगल
उनके पेड़
उनके घोंसले
उनके वंशज
यह आसमान जहाँ खड़ी होकर
आँजती हूँ आँख
टाँकती हूँ आकाश कुसुम बालों में
तोलती हूँ अपने पंख
यह पंद्रहवा माला मेरा नहीं उनका था
फिर भी बालकनी में रखने नहीं देती उन्हें अंडे
मैंने बाघों से शौर्य छीना...
इस कविता का आनंद लीजिए, ऑडियो की मदद से...
बुधवार, 20 जुलाई 2022
कविता - मैं और मेरा अकेलापन
मैं और मेरा अकेलापन
रिश्तों का ताना-बाना बुनते हैं।
रात की गहरी खामोशी में
एक-दूजे को सुनते हैं
तब
यादों की शबनम झरती है
भीगी पलकों से गालों पर
मोती-सी परियाँ उतरती हैं।
होठों की सीप खुलकर
परियों को बाँहों में लेती हैं
मुस्कानों की अठखेलियों में
यादें झूम-झूम जाती हैं
अकेलापन
मुझसे नाता तोड़
शबनम में घुल जाता है
मैं यादों के साए में
खुद से बातें करती हूँ
शबनम की परियाँ
मुझे छूकर
मुझमें ही समा जाती है
और भोर की पहली किरण के साथ
एक नई उम्मीद बन
मुस्कान को गहरा करती है
गहराती मुस्कान के साथ
फिर रात की खामोशी छा जाती है
मैं और मेरा अकेलापन
रिश्तों का ताना-बाना बुनते हैं।
इस कविता का आनंद लीजिए, ऑडियो की मदद से...
गुरुवार, 14 जुलाई 2022
आलेख - भक्ति की निर्मल धारा.... संत कबीर
कबीरा खड़ा बाजार में, माँगे सबकी खैर
ना काहूँ से दोस्ती, ना काहूँ से बैर
हिंदी साहित्य में कबीर का व्यक्तित्व अनुपम है। गोस्वामी तुलसीदास को छोड़कर इतना महिमामंडित व्यक्तित्व कबीर के सिवा अन्य किसी का नहीं है। वैसे भी भारत संतों और भक्तों की भूमि मानी जाती है। यहाँ वेदों की ऋचाएँ गूँजती हैं। ऋषि-मुनियों और तपस्वियों की मीठी वाणी की पावन जलधारा बहती है। हमारा भारतीय साहित्य महान संतों के विचारों से भरा हुआ है। कबीर संत कवि और संत, कवि और समाज सुधार थे। ये सिकन्दर लोधी के समकालीन थे । कबीर का अर्थ अरबी भाषा में महान होता है। कबीरदास भारत के भक्ति काव्य परंपरा के महानतम कवियों में से एक थे। भारत में धर्म, भाषा या संस्कृति में से किसी की भी चर्चा कबीर के बिना अधूरी ही रहेगी।
काशी के इस अक्खड़, निडर एवं संत कवि के जन्म को लेकर अनेक किवदंतियाँ प्रचलित है। कुछ लोगों के अनुसार....
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मंगलवार, 12 जुलाई 2022
लेख - चिट्ठियाँ...
थकी-हारी, बेबस, दम तोड़ती चिट्ठियाँ पुराने दौर की होकर भी आज तक हमारी आँखों में बसी हुई हैं। कभी ये चंचल है, तो कभी गंभीर। कभी ताजगी का झौंका है तो कभी उदासी का सागर। कभी शर्माती-सकुचाती दुल्हन का श्रृंगार है तो कभी ममत्व का उमड़ता सावन। कभी ये भाई की कलाई पर बंधी राखी-सी बहना के प्यार की पहचान है तो कभी बहना की चुटिया पर कसा हुआ शरारती, चंचल और नटखट भाई का दुलार है। कभी पति-पत्नी के त्याग-समर्पण और प्रेम का उपहार है तो कभी युवा हृदय में प्रस्फुटित प्रेम की पहली फुहार है। कभी ये पिता का विश्वास है तो कभी लाडली बिटिया या बेटे के मन की उमंग है। लहर, तरंग, ज्वार, समंदर, मौसम, उल्लास, उमंग, जोश, जुनून…. और न जाने क्या-क्या उपमाओं से सजी-सँवरी ये चिट्ठियाँ आज कराह रही हैं, सिसक रही हैं और नई तकनीकी जाल में उलझकर दम तोड़ रही हैं।
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सोमवार, 11 जुलाई 2022
हिंदी व्याकरण - अलंकार की कहानी
व्याकरण प्रदेश में अलंकार नाम का एक राजा राज्य करता था। उसके तीन पुत्र थे – शब्द, अर्थ और उभय। यथा नाम तथा गुण। शब्द और अर्थ में अपने नाम के अनुसार ही गुण समाए थे। दूसरी ओर उभय ने पिता के नाम से पहचान तो पाई लेकिन अपने खुद के कुछ विशेष गुण न होने के कारण उसने शब्द और अर्थ के गुणों को ही आत्मसात कर लिया। परिणाम यह हुआ कि उभयालंकार की कोई विशेष पहचान नहीं बन पाई। उभयालंकार अपने पुत्र और पुत्री संकर और संसृष्टि का साथ पाकर ही संतुष्ट रहने लगा।
आगे क्या हुआ? यह जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...
रविवार, 10 जुलाई 2022
कहानी - सत्संग की दुकान
सत्संग की दुकान...-
एक दिन मैं सड़क से जा रही थी, रास्ते में एक जगह बोर्ड लगा था, ईश्वरीय किराने की दुकान...
मेरी जिज्ञासा बढ़ गई क्यों ना इस दुकान पर जाकर देखूं इसमें बिकता क्या है?
जैसे ही यह ख्याल आया दरवाजा अपने आप खुल गया, जरा सी जिज्ञासा रखते हैं तो द्वार अपने आप खुल जाते हैं, खोलने नहीं पड़ते, मैंने खुद को दुकान के अंदर पाया...
मैंने दुकान के अंदर देखा जगह-जगह देवदूत खड़े थे, एक देवदूत ने मुझे टोकरी देते हुए कहा, मेरी बच्ची, ध्यान से खरीदारी करना, यहाँ सब कुछ है जो एक इंसान को चाहिए ...
देवदूत ने कहा एक बार में टोकरी भर कर ना ले जा सको, तो दोबारा आ जाना फिर दोबारा टोकरी भर लेना...
अब मैंने सारी चीजें देखी, सबसे पहले धीरज खरीदा, फिर प्रेम, फिर समझ, फिर एक दो डिब्बे विवेक के भी ले लिए...
आगे जाकर विश्वास के दो तीन डिब्बे उठा लिए, मेरी टोकरी भरती गई...
आगे पवित्रता मिली सोचा इसको कैसे छोड़ सकती हूँ, फिर शक्ति का बोर्ड आया शक्ति भी ले ली..
हिम्मत भी ले ली सोचा हिम्मत के बिना तो जीवन में काम ही नहीं चलता...
थोड़ा और आगे सहनशीलता ली फिर मुक्ति का डिब्बा भी ले लिया...
मैंने वह सब चीजें खरीद ली जो मेरे मालिक को पसंद है, फिर एक नजर प्रार्थना पर पड़ी मैंने उसका भी एक डिब्बा उठा लिया..
वह इसलिए कि सब गुण होते हुए भी अगर मुझसे कभी कोई भूल हो जाए तो मैं प्रभु से प्रार्थना कर लूंगी कि मुझे भगवान माफ कर देना...
आनंदित होते हुए मैंने बास्केट को भर लिया, फिर मैं काउंटर पर गई और देवदूत से पूछा, मुझे इन सब समान का कितना बिल चुकाना होगा?
देवदूत बोला मेरी बच्ची यहाँ बिल चुकाने का ढंग भी ईश्ववरीय है, अब तुम जहां भी जाना इन चीजों को भरपूर बांटना और लुटाना, जो चीज जितनी ज्यादा तेजी से लूटाओगे, उतना तेजी से उसका बिल चुकता होता जाएगा और इन चीजों का बिल इसी तरह चुकाया जाता है...
कोई-कोई विरला इस दुकान पर प्रवेश करता है, जो प्रवेश कर लेता है वह माला-माल हो जाता है, वह इन गुणों को खूब भोगता भी है और लुटाता भी है...
प्रभू की यह दुकान का नाम है सत्संग की दुकान
सब गुणों के खजाने हमें ईश्वर से मिले हुए हैं, फिर कभी खाली हो भी जाए तो फिर सत्संग में आ कर बास्केट भर लेना...
इस प्रेरक कहानी का आनंद लीजिए, ऑडियो की मदद से...
बुधवार, 6 जुलाई 2022
बाल कविता - तितली रानी आना री
आना री आना, ओ तितली रानी आना री!
मेरे साथ खेलना, करना नहीं बहाना री!
फूलों के कानों में गुप-चुप क्या बतियाती हो,
इधर-उधर की उससे बातें कहने जाती हो,
चुगली अच्छी नहीं, पड़ेगा क्या समझाना री?
इतने सारे रंग कहाँ से पाए हैं तूने,
अपने प्यारे पंख जरा देना मुझको छूने,
नहीं सताऊँगी बिल्कुल भी, मत डर जाना री!
भाते सब तुमको गुलाब या जूही और चमेली,
इन सबसे क्या कम कोमल है मेरी नरम हथेली,
बोलो, कितना तुम्हें पड़ेगा शहद चटाना री!
इतनी बार बुलातीं, फिर भी बड़ा अकड़ती हो,
करूँ खुशामद जितनी, उतना नखरे करती हो,
मत आओ, पर समझो ठीक नहीं इतराना री!
बिस्तर तेरा पंखुड़ियों का, मेरा माँ का आँचल,
तुम पराग खाती, मैं खाता दूध-मिठाई-फल,
भौरे तुम्हें सुनाते, मुझको दादी गाना री।
अकड़ रही हो इसीलिए न, पंख तुम्हारे पास,
जब चाहो फूलों पर बैठो या छू लो आकाश,
तुम्हें न पड़ता टीचर जी के डंडे खाना री!
बाल कविता - छोटी चिड़िया, बड़ी चिड़िया
छोटी चिड़िया पेड़ पर,
बैठी बड़ी मुंडेर पर!
छोटी चिड़िया ने फल खाए
और बड़ी ने दाने,
फिर दोनों ने, चीं-चीं, चीं-चीं
खूब सुनाए गाने।
गाने से जब पच गया खाना
खाया फिर से सेर भर!
छोटी ने फिर दाना खाया
और बड़ी ने फल,
इसके बाद पिया दोनों ने
नदी किनारे जल।
फिर दुलार से चोंच मिलाई
आजू-बाजू घेर कर।
अब गाने, गा-गाकर दोनों
आईं सबसे कहने,
अचरज क्यों करते हो भाई
आखिर हम दो बहनें।
जब जी चाहे हम तो प्यारे
प्यार करेंगे ढेर भर।
कवि - अभिरंजन कुमार
छोटी चिड़िया पेड़ पर,
बैठी बड़ी मुंडेर पर!
छोटी चिड़िया ने फल खाए
और बड़ी ने दाने,
फिर दोनों ने, चीं-चीं, चीं-चीं
खूब सुनाए गाने।
गाने से जब पच गया खाना
खाया फिर से सेर भर!
छोटी ने फिर दाना खाया
और बड़ी ने फल,
इसके बाद पिया दोनों ने
नदी किनारे जल।
फिर दुलार से चोंच मिलाई
आजू-बाजू घेर कर।
अब गाने, गा-गाकर दोनों
आईं सबसे कहने,
अचरज क्यों करते हो भाई
आखिर हम दो बहनें।
जब जी चाहे हम तो प्यारे
प्यार करेंगे ढेर भर।
कवि - अभिरंजन कुमार